उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के पौत्र रखेंगे उनकी परंपरा को कायम, आज शहीदों के लिए शहनाई पेश
वाराणसी। आज मुहर्रम का अवसर हैं। वाराणसी में भी मुहर्रम की काफी धूम रहती है। हालांकि इस वर्ष कोरोना गाइडलाइन के मद्देनज़र जुलुस नहीं नीकल रहा। वाराणसी में मुहर्रम उस्ताद बिस्मिल्लाह खान बिना फीका है। भारत रत्न पुरस्कृत उस्ताद बिस्मिल्लाह खान साहब हर साल मोहर्रम के अवसर पर शहनाई वादन करते थे।
इसी दिन बिस्मिल्लाह खान अपनी चाँदी की शहनाई बजाते थे और जुलूस के साथ चल के फातमान गाते थे। मगर आज उनके न होने पर उनके पौत्र आफाक हैदर, नासिर अब्बास, जाकिर हुसैन आज उनके इस सहनाई परंपरा को कायम रखेंगे। बिस्मिल्ला खान साहब की एक बात और प्रचलित है कि वे घर से बहार चाहे कहीं भी क्यों न हों मुहर्रम का चाँद देखते ही घर वापस लौटआते थे। इसी मोहर्रम के महीने में खान साहब अपनी चांदी की शहनाई से शहीदों की याद में धुन बजाते थे और शहीदों की याद में शहनाई बजाते हुए रो भी देते थे।
आज मुहर्रम के अवसर पर उस्ताद बिस्मिल्लाह खान साहब की इस सहनाई वादन की परंपरा को जारी रखते हुए उनके पौत्र दरगाह फातमान सिगरा कर्बला के शहीदों के लिए शहनाई पेश करने वाले हैं।
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