बदहाली के शिकार बुनकर सब्जियां बेचने को मजबूर
वाराणसी। वैश्विक महामारी कोरोना के चलते लगे देशव्यापी लॉक डाउन ने सभी प्रकार के व्यवसाय को प्रभावित किया है। ऐसे में वाराणसी की पहचान बनारसी साड़ी को मूर्त रूप देने वाले बुनकर बदहाली के आंसू रो रहे है।
पूरे वाराणसी में बनारसी साड़ी को पहचान देने वाले बुनकरों की संख्या लगभग 5 लाख के करीब है। ये बुनकर लॉक डाउन से पूरी तरह से टूट गए है और अब जीवन यापन के लिए सब्जियां बेचने को मजबूर है।
जो गलियों हमेशा पावरलूम की मशीनों से गुलजार हुआ करती थी वहां अब सन्नाटा पसरा हुआ है। लॉक डाउन की समस्या ने बुनकरों को इस कदर परेशान कर दिया है कि अब वह बुनकरी को छोड़ सब्जियां बेचने को मजबूर है।
पैसों की तंगी ने इन बुनकरों को इतना मजबूर कर दिया है कि ये बुनकर घरों के गहने बेच रहे है। कुछ बुनकर तो कबाड़ में अपनी बुनकरी की मशीनों तक बेंचकर अपने घर का खर्च चला रहे है।
कुछ बुनकरों ने अपनी समस्या बताते हुए कहा कि एक तो रोजगार ठप पड़ा हुआ है और बीतें रमजान में घर में राशन और अन्य चीजों की पूर्ति के लिए गहने तक बेचने पड़े।
बुनकरों ने बताया है कि लॉक डाउन के शुरुवाती दौर में पार्षद के द्वारा राशन तो मिला मगर लंबे समय तक पैसों की तंगी ने अब उन्हें सब्जी बेचने को मजबूर कर दिया है।
उन्होंने बताया कि शुरू में तो सब्जी बेचने में शर्म महसूस हुयी मगर भूखे पेट ने उस शर्म को मार दिया और अपना और अपने घर वालों के भरण पोषण के लिए कुछ ठेले से और कुछ छोटी छोटी दुकानें लगाकर सब्जी बेंच रहे है।
पैसों की तंगी से परेशान कुछ लोग सब्जियों के अलावा टॉफी, बिस्किट जैसी चीजें बेच रहे है।
न्यूज़ बकेट पत्रकारिता कर रहे छात्रों का एक छोटा सा समूह है, जो नियमित मनोरंजन गपशप के साथ-साथ सामाजिक मुद्दों पर प्रकाश डालने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं, इसके अलावा विभिन्न त्योहारों और अनुष्ठानों में शामिल सौंदर्य, ज्ञान और अनुग्रह के ज्ञान का प्रसार करते हुए भारतीय समाज के लिए मूल्य का प्रसार करते हैं।