काशी में खेली गयी चिता की राख से मशान पर होली, विदेशी पर्यटकों ने भी दर्ज़ कराई उपस्थिति
वाराणसी: ये तो सब कहते है की ब्रज की होली सबसे निराली होती है पर बनारस की रंगभरी एकादशी के क्रम से शुरू होने वाली होली की छँटा अपने आप में ही निराली होती है। कल रंगभरी एकादशी के पर्व पर महादेव द्वारा माँ पार्वती का गौना कराने के उपलक्ष्य में काशी में होली खेली गयी जिसमे उनके तमाम भक्तगण शामिल हुए।
इसी क्रम में आज काशी के प्रसिद्ध मणिकर्णिका घाट पर बाबा के श्रद्धालुओं ने मशान में चिता की राख से होली खेली। यह परंपरा काफी पुरानी है और हर साल की तरह इस बार भी काशीवाशियो द्वारा धूमधाम से मनाई गयी, जिसमे इस बार विशेष रूप से 51 विदेशी कलाकार इस पर्व में शामिल हुए।
रंगभरी एकदशी के एकदिन बाद काशी नगरी के संरक्षक बाबा महादेव अपने श्रद्धालुओं के संग मशान पर चिता की राख से विधिवत होली खेलते है, इसके पीछे एक विशेष मान्यता है आज हम बताएँगे आपको इस पर्व से जुडी महत्वपूर्ण बाते।
जानिए आखिर क्यों खेली जाती है मशान पर चिता की राख से होली
मान्यता है की रंगभरी एकादशी के दिन बाबा विश्वानाथ, महादेव माता पार्वती का गौना कराकर लाते है, और देव लोक के सारे देवी देवता इस दिन स्वर्गलोक से बाबा के ऊपर गुलाल फेकते है। इस दिन काशी विश्वनाथ मंदिर के आस पास की जगह अबीर और गुलाल के रंगो से रंग जाती है पर उनके इस भक्तों में सिर्फ इंसान ही नहीं शामिल है बल्कि की शिव के बारातियो में भूत – प्रेत गण भी शामिल है। और बाबा शमशान नाथ व उनके औघढ भक्त इन्ही जलती हुई चिताओं व शवो के साथ होली खेलकर उन्हें भी इस सांस्कृतिक विरासत में शामिल कर लेते है। एक बार तो उन्हें भी यही लगता है कि ये श्मशान है या कोई उत्सव स्थल।
जो रंगभरी एकादशी के दिन उनके साथ होली नहीं खेल पाते है। इसी वजह से स्वयं महादेव भूत – प्रेत गणो के साथ होली खेलने के लिए मणिकर्णिका घाट पे जाते है जहा वो मशान पर चिता की राख से अपने इन विशेष भक्तो के साथ होली खेलते है और इस अनोखी परम्परा का निर्वहन आज भी काशी के निवासियों द्वारा किया जाता है।
इस वीडियो में देखिये कैसे मनाया जाता है यह उत्सव