महिलाओ का खतना हर हाल में बंद होना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिमों के बोहरा समाज में खतना प्रथा पर कड़ी टिप्पणी की है। कोर्ट ने पूछा है कि आखिर महिला के शरीर के निजी अंग को धर्म से क्यों जोड़ा जा रहा है। याचिकाकर्ता सुनीता तिवारी ने महिलाओं में हलाला और खतना जैसी प्रथा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। इस केस की पैरवी वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह कर रही हैं।
नाबालिग उम्र में निजी अंगो को छूना क़ानूनी अपराध है
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ सिंह की बेंच ने इस पर सुनवाई करते हुए कहा कि इस तरह की धार्मिक मान्यताओं के खिलाफ पॉस्को एक्ट है, जिसमें नाबालिग उम्र की लड़कियों के निजी अंगों को छूना अपराध है।
विपक्ष का तर्क: नहीं होता कोई नुक्सान
वहीं इस मामले में सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने दाउदी बोहरा वीमेंस एसोसिएशन फॉर रिलिजिएस फ्रीडम की ओर से कोर्ट में पेश होकर कहा कि इस्लाम धर्म में हजारों वर्षों से खफ्द और खतना जैसी प्रथा चली आ रही है। इसमें लड़की के निजी अंग का बहुत ही छोटा से हिस्से को काटा जाता है जो नुकसानदायक नहीं है। उन्होंने तर्क दिया कि यह मुस्लिम पुरुषों की ही तरह की परंपरा है।
इस पर अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि पुरुषों में निजी अंगों का खतना करने के कुछ लाभ हैं, जिसमें एचआईवी फैलने का खतरा कम होना शामिल है, लेकिन महिलाओं का खतना हर हाल में बंद होना चाहिए, क्योंकि इसके काफी दुष्परिणाम हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और अफ्रीक के 27 देशों में इस पर पूरी तरह प्रतिबंध है।