वाराणसी में शुरू हुयी होली, खुद बाबा विश्वनाथ से जुड़ा है रंगभरी एकादशी का पर्व

वाराणसी में शुरू हुयी होली, खुद बाबा विश्वनाथ से जुड़ा है रंगभरी एकादशी का पर्व

वाराणसी: ये तो सब कहते है की ब्रज की होली सबसे निराली होती है पर काशी नगरी में रंगो की छठा शिवरात्रि के दिन से ही शुरू हो जाती है। वैसे तो इस बार होली 2 मार्च को मनाई जा रही है, लेकिन बनारस में यह होली 26 फरवरी से रंगभरी एकादशी के मौके से ही शुरू हो गयी।

फाल्गुन शुक्ल महीने की एकादशी को रंगभरी एकादशी कहा जाता है। और इस दिन स्वयं बाबा विश्वनाथ खुद अपने भक्तों के साथ होली खेलते है। रंगभरी एकादशी के दिन बाबा की चल प्रतिमा अपने परिवार के साथ निकलती है जिसकी भव्यता देखने लायक होती है।

यू तो हमारे देश में मथुरा और ब्रज की होली मशहुर है, पर बनारस में मनने वाली महादेव की होली भी कम मनमोहक नहीं है, रंगभरी एकादशी के दिन साल में एक बार खुद काशी संरक्षक महादेव अपने परिवार के साथ निकलते है और इस बार तो यह पर्व और ख़ास हो गया क्योंकि इस बार भगवान खादी के वस्त्र पहनकर निकले।

काशी में वैसे तो हर दिन भोले बाबा से जुड़ा रहता है। लेकिन शिवरात्रि के बाद पड़ने वाला रंग भारी एकादशी का अपना अलग ही महत्व है। इस दिन काशी मानों भोले भंडारी के रंग में रंग जाती है, आज के इस पर्व पर बाबा के श्रदालुओ में विशेष उत्साह देखने को मिलता है।

इस पर्व की है विशेष मान्यता

इस पर्व के बारे में श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर के महंत डॉ कुलपति तिवारी ने हमें बताया की, मान्यता है की देव लोक के सारे देवी देवता इस दिन स्वर्गलोक से बाबा के ऊपर गुलाल फेकते है। इस दिन काशी विश्वनाथ मंदिर के आस पास की जगह अबीर और गुलाल के रंगो से रंग जाती है, और भक्त जमकर बाबा के साथ होली खेलते है। कहा जाता है की बाबा इस दिन माँ पार्वती का गौना कराकर वापस लौटते है, बाबा के पावन मूर्ति को बाबा विश्वनाथ के आसान पर बैठाया जाता है।

प्रति वर्ष होने वाले इस रंगभरी एकादशी में बाबा रेशमी जोड़ा-जामा (धोती -दुपट्टा-अंगरखा) में सजते है। रूपहली जरी से सुसज्जित परिधान उनपर खूब फबते है, लेकिन इस बार बाबा को आज के दिन खादी पहनाया गया है।

इसके पीछे एक विशेष कहानी है बताया जाता है की 1943 में पं. जवाहरलाल नेहरू की माता स्वरूप रानी, बाबा काशी विश्वनाथ का दर्शन करने आई थीं, और महादेव को खादी पहनाने की अपनी इच्छा को भी महंत परिवार के सामने रख दिया और तभी से यह परम्परा चली आ रही है।

Mithilesh Patel

After completing B.Tech from NIET and MBA from Cardiff University, Mithilesh Patel did Journalism and now he writes as an independent journalist.

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