हाशिये पर पड़े समाज के लेखक मुंशी प्रेमचंद का गांव लमही आज खुद है हाशिये पर!
हिन्दी साहित्य के सबसे बड़े उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद की 31 जुलाई यानी आज जयंती है।
आज मुंशी प्रेमचंद की 141वीं जयंती है। उनका जन्म 31 जुलाई, 1880 को हुआ था।
मुंशी प्रेमचंद का जन्म वाराणसी के लमही गांव में हुआ था।
आज उनकी जयंती के मौके पर भी लमही में कुछ ख़ास आयोजन देखने को नहीं मिला।
लमही में औपचारिकता के नाम पर प्रेमचंद के 141 वीं जयंती मनाई गई।
इस मौके पर समाजसेवी माता प्रसाद ने बच्चों के साथ एक केक काटकर प्रेमचंद को याद किया।
मुंशी प्रेमचंद को उपन्यास सम्राट कहा जाता है। हिन्दी साहित्य प्रेमचंद के बिना अधूरा है।
प्रेमचंद को पढ़े बगैर शायद ही हिन्दी साहित्य का कोई विद्यार्थी आगे बढ़ सकता है।
प्रेमचंद की लेखनी पूरे जीवन गरीबों, मजलूमों, वंचितों, शोषितों, पीड़ितों और समाज में हाशिये पर पड़े लोगों के हक़ में चलती रही।
उनकी हर कहानी में एक मुकम्मल गांव और गांवों की समस्याओं का जिक्र होता है।
हाशिये के लोगों पर कहानी और उपन्यास लिखने वाले मुंशी प्रेमचंद का गांव आज खुद ही हाशिये पर पड़ा हुआ है।
लमही पूरी तरह से वाराणसी की मुख्यधारा से कटा हुआ है।
घाटों की चमक दमक और मंदिरों के सौंदर्य के सामने लमही बेहद बौना हो चुका है।
उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद का गांव आज धूल फांक रहा है।
आम दिनों में तो लमही वीरान रहता ही है।
लेकिन आज उनकी जयंती के दिन भी ये हाल नहीं बदला है।
लमही में आज कोई विशेष आयोजन नहीं देखने को मिला।
किसी सरकारी कार्यक्रम का अता-पता नहीं है।
वाराणसी के जनप्रतिनिधि राज्य सरकार और केंद्र सरकार तक में मंत्री हैं।
इसके बावजूद मुंशी प्रेमचंद की जयंती रूखी सूखी ही रही।
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