252 वर्षों से विसर्जित नहीं हुयी यह दुर्गा प्रतिमा
वाराणसी। शारदीय नवरात्र के शुरू होने के साथ ही माँ दुर्गा की प्रतिमाएं स्थापित करने की परम्परा है। ऐसी ही एक मूर्ति की स्थापना वाराणसी के एक मुखर्जी परिवार के लोगों ने 1767 में की थी जो उस समय विसर्जन के लिए उठाई गई और उठ नहीं पाई थी जो आज भी इतने वर्षों बाद विराजमान है।
252 साल बाद आज भी शारदीय नवरात्र में माँ की पूजा अर्चना विधि विधान से की जाती है। नवरात्र में माँ के शक्ति रूप की पूजा का विधान वैसे तो बंगाल से चला आ रहा है मगर आज इस पर्व को पूरा भारत धूम धाम से मनाता है।
वाराणसी में दुर्गा पूजा की शुरुवात 1767 में एक मुखर्जी परिवार ने इसी मूर्ति को रख कर की थी मगर विजयादशमी के दिन जब माँ दुर्गा की इस मूर्ति को उठाने की कोशिश की गई तो ये मूर्ति हिली तक नहीं और उसी रात्रि को मुखर्जी की दादी माँ को स्वप्न आया कि मुझे यही रहने दो और अपने सामर्थ के अनुसार मुझे शाम को चने और गुड़ का भोग लगा दिया करो। माँ की कृपा है कि मिटटी से बनी ये 252 साल पुरानी मूर्ति आज भी उसी रूप में यहा विराजमान है।
शारदीय नवरात्र में माँ की मूर्ति की स्थापना पहले दिन या फिर षष्टि के दिन किया जाता है मगर वाराणसी के इस पुराने दुर्गा बाड़ी में नवरात्र में दर्शन का अपना एक अलग महात्म है।
माँ की इस मूर्ति की विशेषता ये भी है कि बंगलामूर्ति के तरह ये मूर्ति( एकचाल) में है यानि एक ही साचे में पूरी मुर्तियां है। नवरात्र भर दुर्गा बाड़ी में चंडी पाठ चलते रहता है। माँ की महिमा सुन भक्त दूर-दूर से खिचे चले आते है।
माँ की लीला अजब है कि मिटटी की बनी मूर्ति आज भी उसी स्वरुप में यहां विराजमान है ये शायद भक्तों के लिए माँ की शक्ति का एक रूप ही है।
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