यह है बनारस की 400 वर्ष पुरानी परंपरा, बारातियो के लिए लेनी होती है अनुमति
वाराणसी: आज हम आपको बताने जा रहे है वाराणसी एक ऐसे विशेष परंपरा के बारे में जो पिछले 400 वर्षो से चली आ रही है। जिसमे बसंतपंचमी को महादेव बाबा विश्वनाथ का तिलकोत्सव होता है और महाशिवरत्रि को विवाह और महाशिवरात्रि को यह कार्यक्रम होता है कशी विश्वनाथ मंदिर के महंत डॉ कुलपति तिवारी के घर पर जहा मातृका पूजा विधि विधान से संपन्न हुआ।
400 साल से लगातार यह परंपरा चली आ रही है जिसमे महादेव और माता गौरा के विवाह की रस्मन अदायगी की जाती है मानत परिवार द्वारा इस वर्ष भी वैसे ही सभी रीतियो का अनुपालन किया गया है। ये हमारा सौभगाय है की भगवान् भोले ने हमारे पूर्वजो और हमें इस काबिल बनाया की माता का कन्यादान कर सके।
विवाह की रस्म आचार्य सुधीर शास्त्री द्वारा संपन्न कराई गयी जिसमे परात में आटे की बनायीं हुयी बेदी को रखा गया और 400 वर्ष पुराने स्फटिक और नर्दमेश्वर के शिवलिंग को मंत्रोच्चार के बिच स्थापित किया गया इस दौरान बाबा की रजत प्रतिमा को अभिषेक भी किया गया।
विवाह के लिए लेनी होती है तीनो देवो से अनुमति
डॉ तिवारी ने बताई की यह वर्ष सभी के लिए खुशाली लेकर आया है वैदिक मंत्रो के बीच जहा बाबा के बारातियो के लिए भगवान ब्रम्हा विष्णु और महेश से अनुमति मांगी गयी और विवाह के सफलतापूर्वक होने की प्रार्थना की गयी।
डॉ कुलपति तिवारी ने बतया की मंगलवार की रात चारो पहर आरती की जाएगी और बाबा के दर्शन के लिए रात्रि भर सारे कपाट खुले रहेंगे और रात्री में सप्तऋषि आरती के बीच माता पार्वती और भगवान शंकर का विवाह संपन्न कराया जाएगा।