बदहाली के कगार पर बनारस की पहचान
वाराणसी। 69 दिन के लॉक डॉउन के बाद आखिरकार वापस व्यापारियों के लिए सुचारू रूप से दुकानों को खोलने की अनुमति दे दी गई है।
बात करें तो धर्म की नगरी काशी को सिर्फ धार्मिक मंदिरों और शिवालयों से नहीं जाना जाता बल्कि बनारस की फेमस बनारसी साड़ी से भी जाना जाता है।
अगर बनारसी साड़ी के व्यापार की बात करें तो 69 दिन के लॉक डाउन ने बनारसी साड़ी की पहचान को पिछले कई साल पीछे कर दिया है। जिसको देखते हुए व्यापारियों के बीच एक मायूसी देखी जा सकती है।
दुकान तो खुले हैं लेकिन खरीददार नहीं है क्योंकि शादी विवाह में ज्यादा लोगों की आने की अनुमति नहीं दी गयी है।
साड़ी व्यापार से जुड़े कारोबारियों का कहना है कि इस कोरोना काल में बुनकर के साथ-साथ बनारसी साड़ी के कारोबारियों का भी बुरा हाल है। इस व्यापार से जुड़े लगभग 7 लाख बुनकरों की संख्या जो बनारसी साड़ी के रोजगार से जुड़े हुए हैं, जीवन यापन खतरे में पड़ गया है।
कहा जाता है कि बनारस का दिल बनारसी साड़ी में धड़कता है और बनारसी साड़ी की पहचान दुनियाभर के कोने कोने में है। लेकिन बदहाली के आंसू रो रहे यह बुनकर और दुकानदार अब यह प्रार्थना कर रहे हैं कि सुचारू रूप से वापस जीवन पटरी पर लौटे। ताकि पहले जैसा व्यापार शुरू हो सके।
अगर जल्द राज्य सरकार और केंद्र सरकारों ने बनारसी साड़ी के रोजगार पर ध्यान नहीं दिया तो धीरे-धीरे इसकी पहचान पर धूल जमने लगेगी। जैसे पावरलूमों के उपर जम गई है। फिलहाल तो व्यापारी अभी भी परेशान है और बेसब्री से कहते हैं कि अतिथि काशी आए।
टूरिज्म यहां का वापस पटरी पर आ सके जिससे बनारसी साड़ी की बिक्री हो सके लेकिन अभी ऐसे कोई बंदोबस्त नहीं दिख रहें हैं जिससे टूरिस्ट धार्मिक स्थलों और टूरिस्ट प्लेस पर आ सके। खरीदार ज्यादातर बाहर के लोग ही थे जिनके आने पर अभी भी संदेह बना हुआ है।
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