आइये जानते है क्यों मानते है छठ पूजा, पहले दिन नहाने खाने के साथ शुरू हुयी छठ पूजा   

आइये जानते है क्यों मानते है छठ पूजा, पहले दिन नहाने खाने के साथ शुरू हुयी छठ पूजा   

वाराणसी। पौराणिक प्रथा के अनुसार राजा प्रियंवद के पुत्र प्राप्ति के लिए महर्षि कश्यप ने यज्ञ करने के बाद आहुति के लिए खीर दी जिससे राजा प्रियंवद को पुत्र प्राप्ति तो हुयी मगर वह मृत पैदा हुआ। 

राजा प्रियंवद जब श्मशान गए तो पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। तभी मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुयी और कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं और तुम मेरी पूजा करो और दूसरों को भी बताओ। राजा ने विधि विधान से व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुयी। इस पूजा को कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को करने का विधान है। 

कार्तिक शुक्ल षष्ठी से चार दिन पूर्व से ही छठ पूजा का प्रारम्भ हो जाता है जिसमें प्रथम दिन परम्परागत तरीके से बिना नमक, लहसुन और प्याज का भोजन बनाया जाता है और दूसरे दिन (नहाय खाय) व्रत करने वालों को दिन में एक बार भोजन करना होता है जो कि मिट्टी या पीतल के पात्र में बनाया जाता है। 

तीसरे दिन शाम को सूर्य देवता को पहली अर्घ शाम को दी जाती है जिसमें शाम के ही समय खरना का प्रसाद खाकर व्रत करने वाले व्रत की शुरुवात करते है और चौथे दिन सुबह सूर्य देवता को अर्घ देने का प्रावधान है। 

पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए लोग छठ पूजा बड़े ही विधि विधान से करते है और इस व्रत में 36 घंटे का निराजल व्रत करते है। सच्ची श्रद्धा से लोग इस पूजा को करते है और इस व्रत का लाभ प्राप्त करते है। 

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Vikas Srivastava

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