दीपावली पर दिव्यांग बच्चों ने दूसरों के घर को किया रौशन
वाराणसी। खुशियों का त्यौहार दीपावली आने वाली है। इसे दीपों का त्योहार कहा जाता हैं। पर उस अंधकार को कोई कैसे दूर करें जो हमारे अन्दर है।
बनारस के कुछ ऐसे बच्चों ने पुरे देश को यह सन्देश दिया है कि अँधेरा दूर करना है तो सबसे पहले अपने अन्दर का अँधेरा दूर करना चाहिए।
बनारस के जीवन ज्योति अंध विद्यालय के बच्चों ने मिलकर कई प्रकार के दीपक और 7 प्रकार की रंग बिरंगी मोमबत्तियां बनाई है और मिसाल पेश की हैं कि खुद की रौशनी न होते हुए भी दूसरों का घर कैसे रौशन किया जाता है।
भावनाएं ऐसी की आंखों से ना देख पाने के बावजूद रोशनी के बारे में बताने पे उन्हें काफी खुशी मिलती है।
जीवन ज्योति अंध विद्यालय में पढने वाले बच्चे आँखों से देख नहीं सकते, उन्होंने दूसरों की जिंदगी को रौशन करने का बीड़ा उठाया है।
इनमे से कई बच्चे नेत्रहीन, मेंटली रिटायर्ड, हियरिंग इम्पेयर्ड, और फिजिकली हेंडीकैप्ड हैं और कुछ समझ भी नहीं सकते।
ऐसे बच्चों को मोमबत्ती और दीपक बनाना सिखाया गया। इन बच्चों ने अपनी मेहनत और लगन से कई प्रकार की मोमबत्तियां बनाई हैं।
जो बच्चे रंगों की पहचान नहीं कर सकते उन बच्चों ने दीपक में रंग भरे है। जिन बच्चों ने कभी रौशनी नहीं देखी उन बच्चों ने दीवाली के दिन कई घरों को रोशनी देने का सामान तैयार किया है।
इन बच्चों के द्वारा बनाये गए सारे सामानों को मार्केट में बेचा जाता है। जो पैसे मिलते हैं वो इन बच्चों को ही दे दिया जाता है। या उन बच्चों की परवरिश पे खर्च किया जाता है।
इस विद्यालय का उद्देश्य है कि उन बच्चों को जो हर तरह से मजबूर, गरीब और गाँव में रहते है। उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जा सके। ताकि वो ज़माने के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर चल सके।
इसे कहते है कि “कौन कहता है की आसमान में सुराग नही हो सकता बस एक पत्थर तबियत से उछालो तो यारो”।
ऐसा ही कुछ कर रहे हैं ये दिव्यांग बच्चे जो खुद दुनिया की रोशनी देख नही सकते है। लेकिन दुसरे के घरो को इनका प्रयास रौशन कर रहा है।
सलाम है इन दिव्यांग बच्चों के जज़्बे को।
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