फिल्म स्वदेश से डॉक्टर हुए प्रभावित, पहली बार पहुंचे वाराणसी
वाराणसी। कहते हैं फिल्में समाज का आइना होती हैं और प्रेरणादायी भी। लेकिन आजकल ऐसी सामाजिक संदेश से ओतप्रोत, लोगों के लिए प्रेरणादायी फिल्में कम बनती हैं, या बॉक्स-ऑफिस पर कम ही सफल हो पाती हैं।
वर्तमान समय मे देश के युवा डॉक्टरों की एक टीम कुछ ऐसी ही एक सामाजिक प्रेरणादायक फिल्म से प्रभावित होकर समाज के पिछड़ों, दलितों, वंचितों, आदिवासियों के लिए पूरे लगन से अपना फ़र्ज़ निभा रही है। डॉक्टर्स मुख्यतः आदिवासी क्षेत्र, मलिन बस्ती और खास तौर पर गांवों में जा कर काम कर रहे हैं। टीम के डॉक्टर्स पढ़े लिखे होने के साथ अच्छे संपन्न घरों से संबंधित हैं।
आपको बता दें कि सभी डॉक्टर अपनी टीम के साथ पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में आकर तीन दिनों तक मलिन बस्तियों में घूम-घूम कर स्वास्थ्य शिविर आयोजित करके हजार से ज्यादा सफाईकर्मियों का निःशुल्क इलाज किया, साथ ही उन्हें विभिन्न दवाएं भी वितरित करायी गयी।
ये युवा चिकित्सक बॉलीवुड की एक फ़िल्म जो की 2004 में रिलीज हुई थी उससे प्रभावित हैं। फ़िल्म में मुख्य अभिनेता शाहरुख खान काम करते नज़र आये थे। यह फ़िल्म थी स्वदेश। फिल्म के नाम पर ही युवा चिकित्सको ने एक संगठन का निर्माण किया। जिसका नाम रखा स्वदेश ग्रुप।
अब इस स्वदेश ग्रुप में महाराष्ट्र के मुंबई, कोलकाता, बिहार, दिल्ली से जुड़े डॉक्टर और इंजीनियर शामिल हैं। इनका उद्देश्य आदिवासी क्षेत्रों, स्लम्स और अति पिछड़े इलाकों में जा कर वहां के लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाना है। पिछड़े इलाके के बच्चों को शिक्षत करना है, लोगों को बेहतर स्वास्थ्य के लिए जागरूक करना है। कुपोषित बच्चों को कुपोषण से बाहर निकालना है। इस ग्रुप में युवकों के साथ युवतियां भी शामिल हैं।
इसमें वाराणसी पहुंचे महाराष्ट्र के डॉ निलेश ने बताया कि वह आसाम और अरुणांचल प्रदेश के शोषित, दलित, आदिवासी क्षेत्र में काम कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि अभिनेता शाहरुख की फिल्म स्वदेश में शाहरुख को एक संपन्न घर का युवा दिखाया गया है, वह उच्च शिक्षा ग्रहण कर अमेरिका में एक बड़ी कंपनी में ऊंचे वेतन पर काम कर रहे होते हैं। लेकिन उन्हें अपने देश के वंचितों, शोषितों, दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों की याद आती है और नौकरी छोड़ कर आते हैं और लग जाते हैं मानव सेवा में। वह हम सभी के दिलों को छू गई। बस हमने भी ठान लिया कि एक ऐसा ही युवाओं का ग्रुप बनाया जाए और समाज के शोषित, पीड़ित लोगों की सेवा की जाए।
पेशे से साइक्रेटिक निलेश ने बताया कि हमारा ग्रुप स्वदेश कश्मीर से कन्या कुमारी, मुंबई से अरुणांचल प्रदेश तक पूरे भारत मे फैला है। वर्तमान समय मे इस ग्रुप में 200 से ज्यादा डॉक्टर काम कर रहे हैं।
निलेश ने बताया कि वह खुद असम व अरुणांचल प्रदेश, छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के बीच काम कर रहे हैं। बताया कि हम लोग युवाओं में एंगर, मनासिक बीमारियों को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं। झारखंड व कश्मीर में भी काम चल रहा है।
स्वदेश के इस डॉ नीरज बिहार के पिछड़े इलाकों में युवाओं, बच्चों और महिलाओं के लिए काम कर रहे हैं। मुंबई से आए डॉ उमेश का कहना है कि समाज में बदलाव युवा ही लाते हैं इसी सोच के साथ हम लोगों ने मानव सेवा को अपना लक्ष्य बनाया। पेशे से इंजीनियर डॉ उमेश ने कहा कि हम लोगों का काम ग्रामीण इलाकों में ज्यादा है क्योंकि वहां ऊंची-ऊंची अट्टालिकाएं नहीं हैं, वहां के सीधे-सज्जन लोगों को स्वास्थ्य, शिक्षा, रहन-सहन, खान-पान, सफाई के प्रति जागरूक किया जा रहा है। कोशिश उनका जीवन स्तर ऊंचा करना है। बच्चों को अच्छी तालीम दिलाना, महिलाओं की सेहत में सुधार करना है।
छत्तीसगढ से आई महाराष्ट्र के मुंबई निवासी स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ० ऐश्वर्या कहती हैं कि वो पिछड़े इलाकों की महिलाओं के बेहतर स्वास्थ्य के लिए काम कर रही हैं। उनका मानना है कि देश में इतनी प्रगति के बाद भी महिलाओं की समस्या को लगातार अनदेखा किया जा रहा है। महिलाएं आज भी पिछड़ी हैं, उन पर अत्याचार ज्यादा हो रहे हैं। ऐसे में उनको मानिसक व शारीरक रूप से सेहतमंद करना हम सब का लक्ष्य है।
मूल रूप से बिहार की रहने वाली डॉ अनुपमा ने अपनी शिक्षा-दीक्षा कोलकाता में पूरी की। वाराणसी दौरे पर आई अनुपमा ने कहा कि छत्तीसगढ़ में काम करने के बाद अब वह बिहार के पिछड़े इलाकों में काम कर रही हैं।
बता दें कि इन सभी युवा डॉक्टरों को वाराणसी लाने वाले दलित फाउंडेशऩ के डिप्टी डायरेक्टर प्रदीप मोरे का कहना है कि युवाओं की सामुदायिक हिस्सेदारी को बढ़ाने के उद्देश्य से ही हम लोग काम कर रहे हैं। हमारा काम जातिवाद, छुआ-छूत को दूर करना और दलितों,पिछड़ों को बराबरी का हक दिलाना है।
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