अगर जज लोया ज़िंदा होते तो शायद अमित शाह को जाना पड़ता जेल
सीबीआई जज बृजगोपाल हरकिशन लोया अकस्मात मौत की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच की याचिकाएं ख़ारिज किये जाने के बाद उनके परिजनों ने असंतुष्टि जाहिर करते हुए कहा है कि अब किसी पर विश्वास नहीं रहा।
द प्रिंट से बात करते हुए जज लोया के चाचा श्रीनिवास लोया ने कहा, ‘फैसला हमारी उम्मीद के मुताबिक नहीं है। कई सवालों के जवाब अभी बाकी हैं. ये बेहतर होता कि स्वतंत्र जांच करवाई जाती. लेकिन अब हमें इस बारे में किसी से कोई उम्मीद नहीं है. मीडिया और विपक्ष ने इस मुद्दे को उठाया जरूर है, लेकिन उससे कुछ होता नजर नहीं आ रहा।’
आपको बता दें की जज लोया की मौत 1 दिसंबर 2014 को नागपुर में हुई थी जहाँ वो अपनी सहयोगी जज स्वप्ना जोशी की बेटी की शादी में शामिल होने के लिए गए थे। जज लोया की मौत की वजह दिल का दौरा पड़ना बताया गया है।
गौरतलब हो की जज लाया सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले की सुनवाई कर रहे थे और उनकी अचानक हुई मौत के लगभग तीन साल बाद अब उनके परिजनों ने चुप्पी तोड़ते हुए उनकी मौत पर कई सवाल खड़े किए हैं।
द कारवां की इस रिपोर्ट में उनके परिजनों की ओर से कई सवाल उठाए गए हैं, जैसे-
-लोया की मौत के समय को लेकर कोई स्पष्टता नहीं है। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के अनुसार मृत्यु का समय 1 दिसंबर 2014 को सुबह 6:15 बजे दर्ज है, जबकि परिजनों के मुताबिक उन्हें एक तारीख़ को सुबह 5 बजे फोन पर उनकी मृत्यु की सूचना दी गई थी।
-लोया की मौत दिल के दौरे से होना बताया गया, जबकि परिजनों ने उनके कपड़ों पर खून के धब्बे देखे थे।
-लोया के पिता के अनुसार उनके सिर पर चोट भी थी।
-परिवार को लोया का फोन मौत के कई दिन बाद लौटाया गया, जिसमें से डाटा डिलीट किया गया था।
-बताया गया कि रात में दिल का दौरा पड़ने के बाद नागपुर के रवि भवन में ठहरे लोया को ऑटो रिक्शा से अस्पताल ले जाया गया था। लोया की बहन ने रिपोर्टर से बात करते हुए पूछा कि क्या इतने वीआईपी लोगों के ठहरने की व्यवस्था होने के बावजूद रवि भवन में कोई गाड़ी नहीं थी, जो उन्हें अस्पताल ले जा सकती थी।
-साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि रवि भवन से सबसे नज़दीकी ऑटो स्टैंड की दूरी दो किलोमीटर है. ऐसे में आधी रात को ऑटो मिलना कैसे संभव हुआ।
-एक सवाल ईश्वर बहेटी नाम के आरएसएस कार्यकर्ता पर भी उठाया गया है। इसी कार्यकर्ता ने लोया की मौत के बाद पार्थिव शरीर को उनके पैतृक गांव ले जाने की जानकारी परिजनों को दी, साथ ही लोया का फोन भी परिवार को बहेटी ने ही लौटाया था।
-पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के हर पन्ने पर एक व्यक्ति के दस्तखत हैं, जिसके नीचे मृतक से संबंध मराठी में ‘चचेरा भाई’ लिखा है, लेकिन परिवार का कहना है कि परिवार में ऐसा कोई व्यक्ति ही नहीं है।
-रिपोर्ट कहती है कि लोया की मौत प्राकृतिक कारणों से हुई, तो फिर पोस्टमॉर्टम की ज़रूरत क्यों पड़ी?
-इसके अलावा पोस्टमॉर्टम के बाद पंचनामा भी नहीं भरा गया।
इस पुरे प्रकरण में गौर करने वाली बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इस प्रकरण की जांच करने वाली प्रमुख संस्था सीबीआई ने कोई भी अपील नहीं की है।
दी व्हायर के अनुसार इस मामले की जांच जज जेटी उत्पत ने शुरू किआ था और उन्होंने 6 जून 2014 को अमित शाह को इस मामले की सुनवाई में उपस्थित न होने के कारण फटकार लगाया था और आने वाले 26 जून को पेश होने का आदेश दिया था लेकिन 25 जून को 2014 को उत्पत का तबादला पुणे सेशन कोर्ट में हो गया। इसके बाद जज बृजगोपाल लोया को ये केस सौंपा गया, उन्होंने भी अमित शाह को इस मामले की सुनवाई में उपस्थित न होने पे सवाल उठाएं और सुनवाई की अगली तारीख 15 दिसम्बर 2014 की परन्तु 1 दिसंबर 2014 को ही उनकी अक्समात मृत्यु हो गयी।
जज लोया के बाद इस मामले को जज एमबी गोसवी देख रहे थे जिन्होंने दिसम्बर 2014 के आखिर में अमित शाह को बरी करते हुए कहा था की उन्हें अमित शाह के खिलाफ कोई पुख्ता सुबूत नहीं मिला।