काशी में पूजी गयीं राक्षसी
वाराणसी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सतयुग से लेकर कलयुग तक देवी देवताओं की पूजा अर्चना की जाती है। सभी देवी देवताओं की पूजा का अपना अलग ही महत्व है और अलग अलग विधि विधान है।
मगर भगवान शिव की नगरी काशी में देवी देवताओं के साथ असुरों की भी पूजा की जाती है। ऐसा ही नजारा तब देखने को मिला कार्तिक पूर्णिमा को होने वाली देव दीपावली के दुसरे दिन राक्षसी त्रिजटा की पूजा की बड़े ही विधि विधान से की गयी।
राक्षसी त्रिजटा का एकमात्र यह मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर के पास साक्षी विनायक मंदिर में स्थित है। जहां साल में एक दिन मां त्रिजटा की पूजा की जाती है।
रामायण काल में जब रावण ने माता सीता का अपहरण कर अशोक वाटिका में बंदी बनाया था तब माता सीता की सबसे बड़ी सहयोगी अशोक वाटिका की प्रमुख राक्षसी त्रिजटा थी और उस संवेदवा की घड़ी में त्रिजटा ने माता सीता को सांत्वना देने के साथ राक्षसों से सुरक्षा भी की थी।
मर्यादा पुरषोत्तम भगवान राम ने जब रावण का वध कर लंका पर विजय प्राप्त की तो त्रिजटा ने माता सीता के साथ रहने का अनुरोध किया मगर माता सीता ने कहा कि ऐसा सम्भव नहीं और त्रिजटा को शिव की नगरी काशी में वास करने का आदेश दिया। माता सीता ने त्रिजटा को वरदान देते हुए कहा कि काशी में वर्ष के एक दिन तुम्हारी पूजा की जाएगी।
देव, दानव, अक्ष, गंधर्व, और भूत गण के सवामी भगवान शिव के त्रिशूल पर बसी काशी में राक्षसी त्रिजटा का मंदिर है। यह मंदिर एक मात्र ऐसा मंदिर है जहां राक्षसी की पूजा की जाती है।
मां त्रिजटा के पूजा देवी स्वरूप में की जाती है और 33 बत्तियों वाले दीपक से आरती की जाती है। मां त्रिजटा को प्रसाद स्वरूप मूली और बैंगन चढ़ाया जाता है।
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