नाविकों पर पड़ी दोहरी मार, क्या साथ देगी सरकार  

नाविकों पर पड़ी दोहरी मार, क्या साथ देगी सरकार  

वाराणसी। पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में देशी विदेशी पर्यटकों की वजह से ही व्यापार चलता है। सुबह- ए-बनारस और नौका विहार की सवारी देशी-विदेशी पर्यटकों को खूब भाती है लेकिन लॉक डाउन के बाद से पर्यटक इन दिनों काशी नहीं आ रहे हैं। 

ऐसे में गंगापुत्र कहे जाने वाले नाविक समाज के लोगों का भी बुरा हाल है। लगभग 12 किलोमीटर के दायरे में बसा 84 घाटों पर नाविक समाज के लोग रहते हैं जो नौका चलाकर अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं। 

पिछले कई दिनों की बंदी और कोरोना काल में अब उनके घर की व्यवस्था गड़बड़ नजर आ रही है क्योंकि 69 दिन से भी ज्यादा का वक्त बीत चुका है। लॉक डाउन से पहले गंगा के लहरों के बीच अटखेलियां खेलते हुए नावे चला करती थी मगर अब घाटों पर सन्नाटा पसरा हुआ है। 

लॉकडाउन में भले कुछ दुकानों को खोलने की मंजूरी दे दी गई हो, कुछ रोजगारों को पटरी पर व्यवसाय मिलने लगा हो लेकिन गंगा की लहरों के बीच 84 घाटों का नजारा थम सा गया है। 

आपको बता दें कि वाराणसी के गंगा घाटों पर नाविकों की संख्या लगभग 50 हजार के करीब है। इन लोगों के आगे खाने और घर को चलाने का बड़ा संकट मंडरा रहा है। 

हालांकि योगी सरकार ने मदद के कुछ हाथ तो बढ़ाएं हैं कुछ घरों में राशन भी वितरण हुआ है लेकिन जरूरत के छोटे-मोटे सामान को खरीदने के लिए पैसों की जरूरत पड़ती है जो अब इनके पास नहीं है। आने वाले 3 महीने का संकट भी नाविक समाज के लोगों को दिख रहा है। 

एक महीने बाद गंगा अपने रौद्र रूप दिखेंगी। बाढ़ के मौसम में 84 घाटों का मंजर गंगा की आगोश में समा जाएगा और तब पूरी तरीके से नौका विहार और संचालन पर प्रतिबंध लग जायेगा।

इस परंपरा को हर साल 3 महीने बिना रोजगार के रहना पड़ता हैं लेकिन ये नाविक लॉकडाउन के बाद आने वाले 3 महीने भी बेरोजगार हो जायेंगे। अब उनके आगे सरकार से मदद की गुहार के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं दिख रहा है। 

नाविक अगर एक महीने भी नौका विहार को मंजूरी मिली तो चंद पैसे कमा कर कोरोना और बाढ़ जैसी गंभीर समस्या से नाविक अपना जीवन बचा सकते हैं।

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Vikas Srivastava

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