विश्व कोलाइटिस दिवस उदर रोग मरीजो को किया जागरुक
विश्व कोलाइटिस दिवस पर बीएचयू उदर रोग विभाग की ओपीडी में मरीजो को किया गया जागरुक।
लम्बे समय से होने वाली तथा बार-बार होने वाली कोलाइटिस को इम्फ्लामेटरी ब्लड डिजीज कहते है। आईबीडी डिसेन्ट्री या डायरिया या ब्लीडिंग की खास दवाइयाॅ जैसे मेसालामीन या वाईसोलोन होती है। आजकल एक इंजेक्शन द्वारा इसका इलाज हो सकता है जो अभी मॅहंगा है।
विश्व कोलाइटिस दिवस पर शनिवार को पूर्वान्ह 10-12 बजे तक सरसुन्दरलाल चिकित्सालय स्थित उदर रोग विभाग के बहिरंग (ओपीडी) में चिकित्सा विज्ञान संस्थान के विशेषज्ञ इस रोग के प्रति लोगो को जागरुक किया। डिपार्टमेन्ट आॅफ गैस्ट्रोइण्ट्रोलाॅजी चिकित्सा विज्ञान संस्थान के विभागाध्यक्ष प्रो0 एस0के0 शुक्ला, प्रो0 वी0के0 दिक्षित तथा डाॅ0 देवेश यादव ने बताया कि कोलाइटिस का लक्षण है बार-बार टट्टी होना, टट्टी में खून आना, पेट दर्द करना, वजन कम होना, कमजोरी तथा खून की कमी होना। उन्होने बताया कि लम्बे समय से होने वाली तथा बार-बार होने वाली कोलाइटिस को इम्फ्लामेटरी ब्लड डिजीज कहते है। आईबीडी दो प्रकार के होते है 1: कोहनीस डिजीज 2: अल्सरेटिव कोलाइटिस
आगे उन्होंने बताया कि 19 मई को विश्व भर में इस बीमारी के प्रति जागरुकता बढ़ाने के लिए वल्र्ड आईबीडी डे मनाया जाता है। हर एक लाख जनसंख्या में 5 से 10 लोग इस बीमारी से पीड़ित हो सकते है। लम्बे समय तक शरीर में बने रहने और सही इलाज न होने पाने की स्थिति में यह बीमारी गम्भीर रुप धारण कर सकती है। आंतो मे रुकावट या फॅसना, अधिक खून रिसाव, बड़ी आॅतो का कैंसर तथा अधिक कमजोरी या एनीमिया से मरीज का जीवन बुरी तरह प्रभावित हो सकता है। इस बीमारी का इलाज इण्डोस्कोपी और बायाप्सी द्वारा ही किया जा सकता है। इस बिमारी का इलाज खर्चीला तथा लम्बे समय (अधिकतर जीवन पर्यन्त) चलने वाला होता है।
आईबीडी अधिकतर अनुवाॅशिक कारणो से होता है, जिससे आंतो की सुरक्षा तन्त्र कमजोर पड़ जाती है। पश्चिमी देशो में बचपन में ज्यादा सफाई का ध्यान न रखने से भी यह बीमारी हो सकती है। भारत में भी खान-पान में साफ सफाई का ज्यादा ध्यान न रखने से इस रोग की बारम्बरता बढ़ी है। पाश्चात्य भोजन शैली एवं जंक फूड से इस बीमारी के लक्षणो में इजाफा हो सकता है, परन्तु इन कारणो से यह बीमारी नही होती है।