दुर्लभ दक्षिण मुखी काले हनुमानजी का दर्शन करने उमड़ी भारी भीड़

दुर्लभ दक्षिण मुखी काले हनुमानजी का दर्शन करने उमड़ी भारी भीड़

वाराणसी। कहते है जहां रामलीला या रामपाठ होता है, वहां पर भगवान हनुमान बिराजते है। धार्मिक नगरी काशी ऐसे ही नहीं धर्म की नगरी कही जाती हैं। काशी स्थित गंगा तट के पूर्वी छोर पर बसा रामनगर भी अपने ऐतिहासिकता के कारण प्रसिद्ध है तो वहीं रामनगर दुर्ग में दक्षिण छोर पर स्थित दक्षिणमुखी सावले हनुमान जी अपने आप मे अनोखा हैं।

सुबह 10 बजे दर्शानर्थीयो को किले के अंदर जाने की अनुमति मिली। हनुमान जी का दर्शन करने के लिए दुर्ग के बाद तीन सौ मीटर तक लाइनें लगी रही।

बताते है कि यही हनुमान जी की प्रतिमा है जब श्रीराम सेतु स्थापना के लिए  प्रार्थनारत थे तो काफी देर तक समुद्र देव प्रकट नही हुए। इस पर उन्होंने अग्निबाण धनुष की प्रत्यंचा पर चढ़ा लिया। समुद्र सूख जाने की डर से तत्काल समुद्र देव अवतरित हो गए और श्रीराम को सेतू निर्माण की विधि को बताया। 

अब श्रीराम ने प्रत्यंचा चढ़ा ली तो बाण छुटना ही था तभी विभीषण की सलाह पर श्रीराम ने तीर को आकाश की ओर चलाया। 

लिहाजा हनुमान घुटने के बल पर बैठ गए। बाण छूटने पर धरती तो रंच मात्र नही हिली लेकिन हनुमान जी का पूरा शरीर काला पड़ गया। इस प्रतिमा को उसी का प्रतीक माना जाता है।

18वीं शताब्दी में किले के निर्माण के दौरान हुई खुदाई में यह प्रतिमा उसी जगह मिली, जहां हनुमान जी आज भी विराजमान है। इसलिए इसके दर्शन के लिए लोग उमड़ते है। उम्मीद है कि लगभग 50 हजार से ज्यादा लोगों ने हनुमान जी की इस विलक्षण प्रतिमा का दर्शन किया।

ये मूर्ति रामनगर किले में जमीन के अंदर कैसे आयी, ये किसी को भी ज्ञात नहीं है। बाद में जब रामनगर की रामलीला शुरू हुई तो भोर की आरती के दिन (सिर्फ एक दिन) श्‍यामवर्ण हनुमानजी के मंदिर को आम जनमानस के लिये साल में एक दिन खोला जाने लगा। ये परंपरा सैकड़ों साल बाद आज भी बदस्‍तूर जारी है।

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Vikas Srivastava