मुहर्रम: बनारस में निकाला नहीं जा सका ऐतिहासिक रांगे का ताजिया
वाराणसी। धार्मिक नगरी काशी में मुस्लिम समुदाय का मातम का त्योहार मुहर्रम जो हर साल बेहद सलीके व अदब से मनाया जाता रहा है, उस पर लगातार दूसरी बार कोरोना का प्रहार हुआ है।
सरकार ने कोरोना नियमों के मुताबिक जुलूस निकालने पर प्रतिबंध लगा दिया है। ताजिये का दिदार भी एक साथ भीड़ लगाकर करने पर मनाही है।
काशी में खास है रांगे का तजिया:
बनारस के मुस्लिम बाहुल्य इलाके लल्लापुरा में 1760 ईस्वी से ही रांगे के ताजिये का चलन है।
रांगा एक प्रकार का धातु होता है जिसे अंग्रेजी में टिन कहा जाता है।
लगभग 400 सालों से इस इलाके में मुहर्रम पर ताजिया निकालने का रिवाज है।
जब ताजिया का जुलूस निकाला जाता है तो न सिर्फ काशी के लोग बल्कि पूर्वांचल भर से गैर-मुस्लिम भी ताजिये का दिदार करने आते हैं।
कोरोना ने पिछले दो बार से इस त्योहार पर ग्रहण लगा दिया है।
क्या है मुहर्रम का इतिहास:
मुहर्रम दुख का त्योहार होता है। इस दिन हजरत इमाम हुसैन व उनके 72 साथियों की इराक के कर्बला के मैदान में शहादत को याद करते हुए मातम मनाया जाता है। इस्लामिक मान्यता के अनुसार इस्लाम धर्म के प्रवर्तक पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन 680 ईस्वी में मुहर्रम की 10वीं तारीख को कर्बला के मैदान में शहीद हो गए थे। उन्होंने यज़ीद की सेना का अंत तक सामना किया था। कर्बला के उस युद्ध की याद में उसी समय से मुहर्रम मनाया जाता है। इसमें ताजिया जुलूस निकाल कर मातम मनाया जाता है। ताजिया हजरत इमाम हुसैन और हजरत इमाम हसन के मकबरे के प्रतिरूप होते हैं।
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