वाराणसी में गंगा नदी के पार 12 करोड़ के कैनाल प्रोजेक्ट की बाढ़ में हुई दुर्दशा
वाराणसी। वाराणसी में आई बाढ़ ने शहर में खूब नुकसान पहुंचाया है। बाढ़ की त्रासदी ने कई लोगों के आशियाने डूबा दिए। तो कारोबायर भी इससे प्रभावित हुआ। इन सब से इतर वाराणसी में आई बाढ़ ने सरकारी प्रोजेक्ट भी बाढ़ की भेंट चढ़ गया है। लेकिन इसके बावजूद सरकारी प्रोजेक्ट के बर्बादी की तस्वीरें हर जगह से नदारद हैं।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में बाढ़ ने निर्माण कार्यों को प्रभावित किया है। वाराणसी में लगभग 12 करोड़ के गंगा के पक्के घाटों को बचाने वाला और गंगा के समानांतर (गंगा नदी के उस पार) बना कैनाल प्रोजेक्ट बाढ़ की भेंट चढ़ गया है। स्थानीय लोग इस करोड़ों के प्रोजेक्ट के विफल हो जाने की बात कह रहे हैं। तो जिला प्रशासन का दावा है कि कोई नुकसान नहीं हुआ है।
मौसम की मार सबसे पहले अगर किसी की कलई खोलती है तो वो है सरकारी काम। वाराणसी में आई बाढ़ ने प्रशासन की हालत भी खराब कर दी है। गंगा नदी के पार लगभग 5 किलोमीटर लम्बा और 45 मीटर चौड़ा कैनाल प्रोजेक्ट बाढ़ की गोद में समा गया। यह प्रोजेक्ट कुल 12 करोड़ की लागत का है। रामनगर से राजघाट तक बने गंगा को बाईपास करने वाला यह प्रोजेक्ट इस वर्ष मार्च में शुरू हुआ था। जब वाराणसी में बाढ़ आई उसके पहले ही यह प्रोजेक्ट पूरी हो चुकी थी।
इस प्रोजेक्ट को लेकर कहा गया था कि इसके बन जाने से गंगा के पक्के घाटों पर पानी का दबाव कम बनेगा और पक्के घाटों का क्षरण भी रुकेगा। हालांकि इस प्रोजेक्ट को लेकर कई सवाल भी उठते रहे हैं। वैज्ञानिकों ने ये आशंका जताई थी कि बाढ़ आने पर ये प्रोजेक्ट डूब जाएगा।
बता दें कि इस प्रोजेक्ट को शुरू करने के पहले बकायदा गंगा से कछुआ सेंक्चुरी शिफ्ट की गई थी। सिंचाई विभाग ने टेक्निकल रिपोर्ट भी बनाई थी। जिसमें घाटों के कटान को रोकने के लिए गंगा की डेप्थ एनालिसिस की गई और गंगा के सामने छोटा चैनल बनाने का सुझाव पेश किया गया था। जिसके बाद ही यह प्रोजेक्ट शुरू हुआ था।
वहीं प्रोजेक्ट के नष्ट हो जाने के सवाल के जवाब में वाराणसी के जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा ने बताया कि “करीब 11 करोड़ का प्रोजेक्ट था। जो UPPCL द्वारा कराया गया था। प्रोजेक्ट का पूरा पेमेंट नहीं हुआ है, क्योंकि प्रोजेक्ट विभाग को स्थानांतरित नहीं हुआ था। वाराणसी में कई प्रोजेक्ट जलमग्न हुए हैं। जिसमें वरुणा कॉरिडोर और रामनगर का ड्रायपोर्ट भी है। ड्रेजिंग के जरिये नहर से निकाली गई बालू को निलाम करके पहले ही सरकार को 3 करोड़ रुपए मिल चुके हैं। अभी कांट्रेक्टर की लायबिलिटी में ही यह प्रोजेक्ट है। जैसे ही गंगा का पानी उतरेगा, वैसे नहर से बालू निकालकर दुबारा शेप में लाया जाएगा और प्रोजेक्ट के पूरा होने पर ही पेमेंट होगा और हस्तांतरण होगा। अब आगे का काम सितंबर के अंत में होगा। इसमें किसी तरह का नुकसान नहीं हुआ है।”
प्रोजेक्ट पर सबसे पहले सवाल खड़ा करने वाले IIT-BHU के शिक्षक और पर्यावरणविद प्रो. विश्वम्भरनाथ मिश्र ने बताया कि “गंगा उस पार के रेत गंगा का ही हिस्सा है और वह बाढ़ में हमेशा डूब जाता है। बगैर स्टडी के गंगा उस पार नहर बनाने का कोई औचित्य समझ में नहीं आता है। जहां तक यह दावा किया जा रहा था कि नहर बन जाने से गंगा के पक्के घाटों पर दबाव कम होगा और कटाव भी कम होगा, इसके लिए नहर बना देने से गंगा काशी के घाटों को छोड़ देंगी और तो और आगे जाकर गंगा घाट धस भी जाएगा। यह पुरे इको सिस्टम के साथ खिलवाड़ है। इससे न केवल इंसान, बल्कि जलचर भी पूरी तरह से प्रभावित होंगे और प्रदूषण भी बढेगा। तकनीकी रूप से यह प्रोजेक्ट सही नहीं है। अभी बाढ़ में पूरा नहर गायब हो गया।”
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