नेताजी के जयंती पर सुभाष मंदिर का अनावरण, अधिवक्ताओं ने रक्तदान करने का लिया संकल्प
वाराणसी। सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक में हुआ था। उनके अंदर बचपन से ही अंग्रेजो के लिए गुस्सा भरा था। नेताजी जी सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिन्द के फौज की स्थापना की थी। नेताजी शुरू से ही सैन्य अनुशासन में यकीन करते थे। नेता जी का नारा था ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा’ अपने इस वादे के तहत देश को आजादी दिलाने वाले महानायक नेताजी की आज जयंती मनाई गयी। आज वाराणसी में अधिवक्ताओं ने कचहरी परिसर में नेता सुभाष चंद्र बोस की जयंती मनायी।
इस अवसर पर लोगो ने रक्तदान करने का भी संकल्प किया। ऐसे महान कार्यो में अधिक से अधिक अधिवक्ताओं ने भाग लेने की बात कही, साथ ही ऐसा पवित्र कार्य करने के लिए युवाओ को प्रेरित भी किया जायेगा।
अधिवक्ताओं ने कहा कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस एक ऐसे नेता थे, जिन्होंने देश को जोड़ने का काम किया था और देश के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी थी। लेकिन, आजकल के जो नेता है वह बस देश मे राजनीति कर रहें है। वह सिर्फ देश को बांटने का काम कर रहे हैं। अधिवक्ताओं ने कहा कि आजादी के समय से ही समाज में अधिवक्ताओं का अहम भूमिका रही है और आज सभी अधिवक्ता यह संकल्प लेते हैं कि सुभाष चंद्र बोस के नीतियों को अपनाने के साथ ही उनके बलिदान को हमेशा याद करेंगे।
वहीं दूसरी ओर नेताजी के जयंती के अवसर पर विशाल भारत संस्थान द्वारा दो दिवसीय सुभाष महोत्सव का आयोजन किया गया। इसके साथ ही लमही स्थित सुभाष भवन में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा का अनावरण भी हुआ।
विशाल भारत संस्थान के अध्यक्ष राजू श्रीवास्तव ने बताया कि सुभास चंद्र बोसे ने जाति धर्म की दीवार को ख़त्म कर दिया था। उनकी सेना में सभी धर्म के लोग थे, और सभी उनकी बाते मानते थे। दुनिया में बहुत से ऐसे महानायक जन्मे पर किसी नहीं बनाया गया। यहां बने इस मंदिर में पुजारी दलित होंगे, जो सुबह शाम नेता जी की प्रतिमा एवं भारत माता का पूजन करेंगे एवं राष्ट्र गान गाकर लोगों में प्रसाद का वितरण भी किया जाएगा, यहां पर प्रतिदिन सलामी भी दी जाएगी।
यह मंदिर सुबह 7 बजे से शाम 7 बजे तक सभी के लिए खुला रहेगा यहां पर सभी धर्म के लोग आकर नेता जी का दर्शन पूजन कर सकेंगे। बता दे कि यह देश का पहला सुभाष मंदिर होगा जहां पर सुभास चंद्र बोस को पूजा जायेगा।
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