जानिए आखिर कौन सा डर सता रहा हैं भाजपा के दलित सांसदों को, जो कर रहे हैं इतना विरोध
पहले सावित्री बाई फुले, फिर छोटेलाल खरवार और अब अशोक दोहरे। भाजपा के ये तीनों दलित सांसद अपनी ही पार्टी की सरकार से खफा हैं। इनके तेवरों पर तरह-तरह की अटकलें हैं। सवाल उठ रहे हैं कि इनकी नाराजगी की वजह वाजिब है या इसके पीछे सियासी कारण हैं।
माना जा रहा है कि प्रदेश व केंद्र में सरकार होने के बावजूद पूरी तवज्जो न मिलने से कुछ सांसदों के मन में पीड़ा है। यही पीड़ा बीच-बीच में सामने आती रहती है। कभी कोई धरने पर बैठ चुका तो किसी की अधिकारियों से तनातनी हो चुकी है। सपा-बसपा के बीच गठबंधन की खबरों ने सांसदों की इस पीड़ा को बेचैनी में बदल दिया है।
जिस समीकरण से चुनाव जीतकर ये पिछली बार लोकसभा पहुंचे थे, उसके कमजोर पड़ने का अंदेशा सता रहा है। मोहनलालगंज के भाजपा सांसद कौशल किशोर भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बिजली विभाग को घेर चुके हैं। बाराबंकी की भाजपा सांसद प्रियंका रावत शिकायत कर चुकी हैं कि अधिकारी उनकी नहीं सुनते, फोन भी नहीं उठाते हैं।
अपने ही पार्टी पे प्रेशर बनाने की हैं तैयारी
राजनीतिक विश्लेषक रतनमणि लाल का निष्कर्ष है कि अपनी ही पार्टी के विरोध में मुखर हो रहे ये स्वर बेवजह नहीं हैं। इसके पीछे मुख्य रूप से कुछ वजहें नजर आती हैं-आगे की पेशबंदी, पार्टी पर प्रेशर बनाने की रणनीति और अपनी खामियां छिपाने का प्रयास तथा कहीं-कहीं अफसरों का मनमाना व्यवहार। इसके कारण छोटेलाल जैसे सांसदों को लगता है कि जब उन्हीं की पार्टी के लोग उनके भाई को ब्लॉक प्रमुख पद से हटवा सकते हैं तो उनकी राजनीतिक जमीन कैसे बचेगी।
जानिए सता रहा हैं कौन सा डर
ऐसा लगता है कि इन सांसदों को अपना टिकट कटने का भय सता रहा है या सपा व बसपा गठबंधन से बदली परिस्थितियों में उनकी बेचैनी बढ़ रही है। इसलिए ये ऐसे मुद्दों को उठाकर भविष्य के लिए प्रेशर बनाने के रास्ते पर चल रहे हैं और वह सरकार को धमकी देने का कोई भी मौका नहीं छोड़ना चाहते हैं।