जल्दबाज़ी में लिया गया था नोटबंदी का फैसला, आरबीआई को नहीं थी जानकारी : रघुराम राजन
भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन का कहना है कि नोटेबंदी का कदम सरकार द्वारा सोच समझ कर उठाया गया कदम नहीं था यह एक जल्दीबाज़ी में लिया गया फैसला था। वही वस्तु सेवा कर (जीएसटी) को लेकर उन्होंने कहा यह कोई इतनी बड़ी समस्या नहीं है जिसे हल नहीं किया जा सकता। हालाकि अच्छा यही होता की सरकार इन सुधारो की शुरुआत क्रमबद्ध तरीके से करती।
पूर्व आरबीआई गवर्नर ने बीते मंगलवार को हार्वर्ड स्कूल में छात्र छात्राओ को संबोधित करते हुए कहा कि यदि जीएसटी का क्रियान्वयन यदि बेहतर तरीके से होता तो यह अच्छा होता। हलाकि नोटबंदी को लेकर उन्होंने सरकार के दावों को ख़ारिज कर दिया। इस विषय में उन्होंने कहा कि 87.5 प्रतिशत मूल्य की मुद्रा को रद्द करना अच्छा कदम नहीं था। यदि सरकार द्वारा 1000 और 500 के नोट बंद करने से पहले सरकार से मशवरा कर लिया होता तो शायद इस तरह की समस्या न कड़ी हुई होती।
मैंने कभी ये नहीं कहा, मुझसे विचर विमर्श नहीं किया गया था। मैंने तो अपने ओर से स्पष्ट कर दिया था कि यह सही कदम नहीं है। कोई भी अर्थशास्त्री यही कहेगा कि यदि 87.5 प्रतिशत मुद्रा को रद्द करना है तो पहले यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि उतनी ही मुद्रा छापकर उसे प्रणाली में डालने के लिए तैयार रखा जाए पर सरकार ने ऐसा नहीं किया।
वापस आ गया अर्थव्यवस्था में सारा काला धन
उन्होंने कहा कि भारत ने इसे किए बिना नोट बंद कर दिए थे, इसका नकारात्मक आर्थिक प्रभाव था। इसके पीछे यह भी सोचना था कि नोटबंदी के बाद कला धन छुपाकर रखने वाले लोग सामने आएंगे और सरकार से माफी मांगकर कहेंगे कि हम इसको वापस कर देने को तैयार है। पर ऐसा नहीं हुआ लगभग पूरा पैसा वापस अर्थव्यवस्था में आ गया जो कि सरकार के लिए एक बड़ा झटका था।