करवा चौथ का पौराणिक महत्व और उससे जुड़ी कथाएं
करवा चौथ विवाहित महिलाओं का बहुत ही प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण त्यौहार है।
इस दिन सभी स्त्रियां सज संवर कर पति की दीर्घायु के लिए व्रत करती हैं और चंद्र देव से प्रार्थना करती हैं कि वह आजीवन सौभाग्यशाली रहे और उनके पति को कोई भी कष्ट ना हो।
स्त्रियों के विश्वास और प्यार का प्रतीक है करवा चौथ। करवा चौथ दो शब्दों से मिलकर बना है ‘ करवा’ यानी मिट्टी का बर्तन और चौथ यानि चतुर्थी।
इस त्योहार पर मिट्टी के बर्तन यानी करवे का विशेष महत्व है। करवा चौथ के दिन मिट्टी के बर्तन की पूजा की जाती है इसलिए करवा का अत्यंत महत्व है।
सभी विवाहित स्त्रियां साल भर बड़े ही जिज्ञासा के साथ इस त्यौहार का इंतजार करती है। यह त्यौहार पति पत्नी के मजबूत रिश्ते का प्रतीक है।
करवा चौथ के दिन महिलाएं अपने पति के लिए लंबी उम्र की कामना करने हेतु निर्जला व्रत रखती है, और भी रात को चांद देखने के बाद ही अपना व्रत खोलती है।
करवा चौथ सूर्योदय से पहले ही शुरू हो जाता है, सूर्योदय से पहले ही सास अपनी बहू को सरगी देती है जिससे व्रत की शुरुआत हो जाती है और फिर शाम को चांद निकलने के बाद महिलाएं जल ग्रहण करती हैं और अपना व्रत खोलती हैं।
करवा चौथ, बहुत ही प्राचीन समय से मनाया जा रहा है कहां जाता है कि देवताओं की समय से चली आ रही है करवा चौथ की प्रथा।
माना जाता है कि जब देवताओं और असुरों के बीच युद्ध चल रहा था और सभी देव हार रहे थे तब वे ब्रह्मा के पास मदद के लिए पहुंचे, ब्रह्मा ने बोला कि यदि सभी देवताओं की पत्नियां उनके लिए व्रत रखेंगे तो युद्ध में उनका जीत अवश्य होगा।
तभी से करवा चौथ का व्रत रखने की परंपरा शुरू हुई और देव उस युद्ध को जीत गए और आकाश में चांद भी निकल आया।
कहा जाता है कि करवा चौथ का व्रत सबसे पहले पौराणिक काल की महान पतिव्रत महिला सावित्री ने रखा था।
सावित्री ने अपने पति की मृत्यु हो जाने पर भी यमराज को उन्हें अपने साथ नहीं ले जाने दिया और अपनी प्रतिज्ञा से पति को फिर से प्राप्त किया लिए करवा चौथ का व्रत महिलाएं सावित्री को ही समर्पित करके रखती हैं।
करवा चौथ के 1 दिन पहले ही सभी औरतें अपने हाथों पर मेहंदी लगाती है। करवा चौथ में मेहंदी का खास महत्व है क्योंकि माना जाता है कि गहरी मेहंदी रचने पर सुहाग की लंबी उम्र होती है।
उसके बाद करवा चौथ के दिन सुबह उठकर सरगी में मिले भोजन को ग्रहण करने के बाद करवा चौथ की व्रत शुरू हो जाती है उस दिन महिलाएं ना तो अन्य ग्रहण करती हैं और ना ही जल।
शाम को चांद दिखने के बाद भगवान शिव शंकर, माता पार्वती, गणेश और कार्तिकेय का पूजा अर्चना कर चंद्र देवता को देखने के बाद वे अपना व्रत खोलती है।
कई जगह तो छलनी में चांद को , और फिर अपने पति को उसी छलनी में देखकर, फिर जल ग्रहण करने की प्रक्रिया है।
इस दिन पूजा के दौरान करवा चौथ का व्रत कथा सुनने का भी खास महत्व है कहा जाता है कि करवा चौथ की कथा सुनने से विवाहित महिलाओं का सुहाग बना रहता है, उनके घर में सुख , शांति, समृद्धि और संतान सुख मिलता है।
कुंवारी लड़कियां भी मनवांछित वर के लिए इस दिन करवा चौथ का व्रत रख सकती है। यह त्यौहार बड़ी धूमधाम से विवाहित महिलाएं मनाती है।
कहा जाता है कि करवा चौथ मनाने से पति की दीर्घायु होती है और घर में भी सुख शांति बना रहता है।